गुरुवार, अगस्त 18, 2016

लखनऊ विश्वविद्यालय संस्मरण !!! 



अभी चार पांच रोज़ पहले ही विश्वविद्यालय में साथ पढ़ चुके सहपाठी मित्रों से साक्षात मुलाकात हुई और पिछले वर्षों के दौरान बहुत से सहपाठी मित्र अब तक फेसबुक और व्हाटस ऐप्प के विभिन्न ग्रुप्स के माध्यम जुड़ चुके हैं. स्कूल कॉलेज के अनुशासन की बंदिशों के बाद जब विश्वविद्यालय में  पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया तो मन में बहुत कुछ आज़ादी मिलने सा ख्याल, तो स्कूल कॉलेज यूनिफार्म का झंझट और ही समय पर स्कूल कॉलेज पहुँचने की कोई चिंता और उस पर सोने पे सुहागा ये कि हॉस्टल में रहना यानी जल्दी या देर से सोने जागने, समय बेसमय अपनी पसंद का कुछ भी खाना खाने, कैसे भी कपड़े पहन कर बाहर घूमने आदि पर पेरेंट्स की पाबंदी से मुक्ति, मतलब संपूर्ण आज़ादी. लेकिन इसके साथ ही ये भी चिंता कि विश्वविद्यालय की पढाई पूरी करते ही इतने बड़े हुजूम के बीच अपने अच्छे भविष्य के लिए एक बढ़िया सी नौकरी प्राप्त कर अपने ऊपर से बेरोजगार होने का ठप्पा मिटाकर आर्थिक आज़ादी हासिल करना. लेकिन जो भी हो 1982 से 1989 तक लगभग सात साल लखनऊ विश्वविद्यालय में पढाई करना और वो भी हॉस्टल में रहकर मेरे जीवन के स्वर्णिम काल से कम नहीं. इस दौरान कई विदेशी छात्रों के अलावा देश के अन्य प्रान्तों, प्रदेश के विभिन्न जिलों से पढ़ाई करने आये लोगों से मुलाकात हुई और उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. बहुत सारे मित्र बने जिनमे से अब कई बहुत सालों बाद सोशल मीडिया के माध्यम से फिर जुड़ गए. ईश्वर महान है !!!!!!

किसी के जीवन के स्वर्णिम काल की बातें कभी जेहन से जाती नहीं और भूलती बिसरती नहीं. विश्वविद्यालय और हॉस्टल से जुड़ी ऐसी ही बहुत सारी बातें और खट्टी मीठी यादें  जो मेरे जेहन में अब तक है उसे आप सभी तक पहुंचाकर आपको लगभग २८-३४  साल पीछे ले चलता हूँ. पढ़ेंगे तो बहुत ही आनंद आएगा. इसे आप संस्मरण कह सकते हैं जिसमे थोड़ा थोड़ा बायोग्राफी और सटायर भी मिक्स है.

 तो हो जाइये तैयार धारावाहिक के रूप में पढ़ने के लिए विश्वविद्यालय की उन क्लास के बारे में जिनमे लगभग ९५ प्रतिशत लड़कियां थी, हॉस्टल की मेस और उसका खाना, हॉस्टल के कॉमन रूम में दूरदर्शन पर चित्रहार और पिक्चर देखना तथा टेबल टेनिस खेलना टैगोर लाइब्रेरी में पढाई, , वो मोस्ट टैलेंटेड लड़कियां जिनकी प्रतिभा का डंका पूरी यूनिवर्सिटी में बजता था और आज वे देश विदेश में उच्च पदों पर सुशोभित हैं. वो सुपर डुपर फैशनेबुल लड़कियां जो खचाखच भरी क्लास में इम्पोर्टेड परफ्यूम्स से गार्निश्ड ब्रांडेड कपड़ों के कारण रूम फ्रेशनर का काम करती थीं और जिनकी चर्चा पूरे कैंपस में थी. बड़े बापों के बिगड़ैल रईस नवाबजादों की जो १०० सी. सी. बाइकों से कैंपस में एक छोर से दूसरे छोर तक बेवजह फर्राटा भरते थे और उन बेहद पढ़ाकू टाइप कूपमंडूक लड़कों की जिन्हें देश दुनिया से कोई मतलब ही नहीं था. उन प्रौढ़ हो चुके दादा टाइप के छात्रों की जो पिछले कई सालों से हॉस्टल में रिसर्च के नाम पर रूम हथियाये हुए थे और संपर्कों से ठेकेदारी भी करते थे जबकि पढाई लिखाई से कोसों दूर थे. उन छात्रों की जो नियमित तौर पर बरास्ता कैलाश हॉस्टल लंबी दूरी पैदल चलते हुए आई टी चौराहे घूमने जाते थे और उन छात्रों की जो नई फिल्म रिलीज होते ही फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के बाद हॉस्टल के अन्य छात्रों को उसकी कहानी बताकर स्टार रेटिंग के साथ अपना जलवा गांठते थे. इसके अलावा और भी बहुत है इस पिटारे में............... बस थोड़ा सा इंतज़ार करिये……………………………. जारी……….

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