गुरुवार, अगस्त 18, 2016

लगभग २८ साल बाद फिर से मिलना, सुखद अनुभूति

ये तो भला हो फेसबुक और व्हाट्सएप्प का जिसने एक नामुमकिन काम को मुमकिन बना दिया. लखनऊ विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन में पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई का आखिरी साल अधिकांश सहपाठियों के लिए विश्वविद्यालय में भी आखिरी साल था और इसके बाद कुछ नौकरी पा जाने के कारण लखनऊ से बाहर चले गए और कुछ लखनऊ और आस पास नौकरी पाने या स्वयं का व्यवसाय करने के कारण लखनऊ में ही रह बस गए. १९८८-८९ के समय मोबाइल था नहीं इसलिए विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद संयोगवश कभी कभार कहीं यात्रा पर आते जाते एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन पर अथवा किसी महोत्सव या मेले में परिवार के साथ अचानक कुछ क्षण के लिए शायद कुछ मित्रों से मुलाकात भी हुई परंतु समय की आपाधापी और व्यस्तता के चलते फिर संपर्क नहीं हो पाया. हाँ यह जरूर कि पिछले पांच छह सालों से फेसबुक पर मौजूद होने से बहुत से सहपाठी फेसबुक फ्रेंड की लिस्ट में आ गए जिससे उनके बारे में निरंतर जानकारी मिलती रहती थी और पुरानी यादें भी ताज़ा हो जाती थी. धन्यवाद अपने प्रिय सहपाठी और मित्र अजय तिवारी का जिन्होंने विश्वविद्यालय में साथ पढ़ चुके मित्रों का व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप बनाकर सबको एक साथ जोड़ डाला. फिर क्या था सबने २८ सालों बाद दिल्ली या लखनऊ में एक साथ फिर से मिलने का प्लान बनाया. आखिरकार सबकी सहमति और सुविधा को देखते हुए एक दो महीने पहले ही १३ अगस्त २०१६ की तारीख मुक़र्रर हुई पहले गोल्फ क्लब में मिलने का प्रोग्राम हुआ परंतु अधिकतम संख्या १०-१२ होने के कारण मित्र समीर माथुर ने गोमती नगर स्थित अपने आवास पर ही रात्रि डिनर की मेज़बानी की पेशकश कर दी जो कि फाइनल भी हो गया. विश्वविद्यालय परिसर स्थित लोक प्रशासन विभाग में अपने पुराने सहपाठियों के साथ पुनः जाने की इच्छा को देखते हुए यह तय हुआ कि १३ अगस्त को पहले ३.३० बजे विश्वविद्यालय मे सहपाठियों की मुलाकात होगी. मैं अपने आवास से विश्वविद्यालय रास्ते में जाम के चलते लगभग ३.५० बजे विश्वविद्यालय पहुंचा. अजय जलंधर से आ रहे थे, फ़ोन किया तो बताया कि वे एयरपोर्ट से सीधे विश्वविद्यालय पहुँच रहे हैं, रितु ऑस्ट्रेलिया से दिल्ली आने के बाद सुबह ही फ्लाइट से लखनऊ आ चुकी थीं और अपनी मित्र नीलम के घर जो कि विश्वविद्यालय के बिल्कुल पास था वहां ठहरी थीं. भूपेंद्र भी एक दिन पहले ही दिल्ली से आ चुके थे और समीर तो लखनऊ में ही थे. मेरे विश्वविद्यालय पहुँचने के ५ मिनट बाद ही अजय भी पहुँच गए लगभग २८ सालों बाद आमने सामने गर्मजोशी से गले मिले खूब हँसे खिलखिलाये. अजय बिलकुल वैसे जैसे २८ साल पहले थे, थोड़ी देर में ही रितु भी अपनी मित्र नीलम के साथ आ पहुंची, दोनों ही पढ़ाई के दौरान हॉस्टल में साथ रही गहरी मित्रता जो कि पिछले ३०-३२ सालों से अब भी बरक़रार. रितु शादी के बाद अपने पति और बच्चों के साथ ऑस्ट्रेलिया में ही बस गयी हैं और वहीँ जॉब करती हैं जबकि उनकी मित्र नीलम का लखनऊ में ही मायका होने के कारण अपने माता पिता से मिलने और उनकी देखभाल के लिए अक्सर लखनऊ आना जाना लगा रहता है. रितु के ऑस्ट्रेलिया से लखनऊ आने के कारण नीलम ने भी अपने लखनऊ प्रवास में बढ़ोत्तरी कर दी. रितु और नीलम दोनों २८ साल बाद भी बिलकुल वैसे की वैसे, बेहद शालीन, सौंदर्य से परिपूर्ण और प्रसन्नचित्त हंसती मुस्कराती. दोनों से कुशलक्षेम पूछा तथा घर परिवार और बच्चों के विषय में बात हुई. फिर समीर और थोड़ी देर में ही भूपेंद्र भी पहुँच गए. सब आपस में गर्मजोशी से मिले, फिर सब वहां गए जहाँ क्लास लगती थी, खूब बात हुई, यादें ताज़ा हुई, फोटो खींचे गए. इसके बाद नीलम ने सबसे आग्रह किया कि सभी विश्वविद्यालय के सामने ही स्थित उनके घर पर चलकर चाय पी लें. अजय, समीर, भूपेंद्र, रितु और हम सभी नीलम के घर पहुंचे. घर पर नीलम के पापा और मम्मी से भी २८ सालों के बाद मुलाकात हुई और उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ. नीलम के पापा अतिशय सज्जन पुरुष और उच्च पदस्थ सेवानिवृत्त अधिकारी और मम्मी भी एक श्रेष्ठ कुलीन महिला. नीलम ने अपने घर पर बेहद स्वादिष्ट स्नैक्स और जायकेदार चाय के साथ हम सबकी मेज़बानी की. इसके बाद रात्रि में समीर के घर डिनर पर मिलने का प्रोग्राम, हम अपने मित्र अरविन्द के साथ रात ८.१५ बजे समीर के घर पहुंचे अजय, भूपेंद्र, रितु, नीलम, विनोद पहले ही आ चुके थे. सबको सरपराइज देते हुए युसूफ भी दुबई से वहां पहुँच चुके थे. कुछ देर बाद विजय कीर्ति और ज्ञानेंद्र भी आ गए. फिर क्या था विश्वविद्यालय के ज़माने की खूब बातें हुई, यादें ताज़ा की गयी, ठहाके लगे. समीर ने अपनी धर्मपत्नी तथा दोनों प्रिय बेटियों के साथ खाने पीने का पंचतारा इंतज़ाम कर रखा था और जिसका सबने खूब लुत्फ़ उठाया. फोटो खींचे गए और ग्रुप में शेयर हुए जो लोग नहीं आ पाए उनका सन्देश आया कि किन कारणों से वे इस यादगार प्रोग्राम में शामिल नहीं हो पाए. और अगले साल इस तरह का प्रोग्राम फिर करने का प्लान बनाकर सबने आपस में विदा लिया.
बहुत बहुत धन्यवाद रितु और युसूफ को जो इतनी दूर से आकर शामिल हुए, अजय को जिनका यह प्रयास सफल रहा. और आखिर में एक बार पुनः समीर और उनके परिवार को इस शानदार आयोजन के लिए बहुत बधाई और धन्यवाद।




















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