रविवार, अगस्त 28, 2016

लखनऊ विश्वविद्यालय संस्मरण-पार्ट 4

विश्वविद्यालय के बीरबल साहनी हॉस्टल में लगभग सभी फैकल्टीज यानी आर्ट्स, साइंस, कॉमर्स, मैनेजमेंट के छात्र रहते थे जिसमे अंडरग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट, एमबीए और रिसर्च आदि सभी के छात्र शामिल थे. हॉस्टल में कुल 96 कमरे थे जिसमे से ग्राउंड फ्लोर पर एक कमरा प्रोवोस्ट के ऑफिस के रूप में काम करता था. इस प्रकार कुल 95 छात्र रहते थे. हर फ्लोर पर 32 कमरे थे. हॉस्टल में फर्स्ट और सेकंड फ्लोर पर जाने के लिए बीच में सीढ़ियाँ बनी थीं. हर फ्लोर पर आमने सामने 8-8 कमरों के ब्लाक बने थे. मेस ग्राउंड फ्लोर पर तथा कॉमन हाल सेकंड फ्लोर पर था. हर फ्लोर पर 24 घंटे एक चपरासी जो कि छात्रों के कमरों की सफाई से लेकर उनकी जरूरत का हर सामान बाज़ार से लाने के लिए रहता था. कुल मिलाकर बहुत ही बढ़िया इंतज़ाम. हर साल नए छात्रों की रैगिंग हॉस्टल के सीनियर छात्र जरूर करते थे परन्तु उसकी भी एक सीमा थी जैसे सीनियर्स को सुबह गुड मोर्निंग बोलने से लेकर कैंपस में कहीं पर भी मिलने पर दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करना अनिवार्य था. रैगिंग के दौरान जूनियर्स को उस समय के बॉलीवुड फिल्मों के हिट गानों को सुनाना और कभी कभी उस पर डांस भी करना होता था. कभी कभी जूनियर्स को उनके साथ पढ़ने वाली कम से कम पांच लड़कियों के नाम भी बताना होता था. लेकिन यह सब शुरुआत के एक आध महीने ही चलता था फिर सब आपस में दोस्त हो जाते थे. आजकल का तो पता नहीं पर उस समय हॉस्टल में हीटर रखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था और लगभग सभी अपने कमरों में हीटर जरूर रखते थे जिससे दो काम हो जाते थे एक तो जब चाहते कमरे में ही चाय बन जाती और दूसरा सर्दियों के मौसम में तापने के भी काम आता था. अधिकाँश छात्र देर रात तक जग कर अपनी पढ़ाई करते थे जबकि कुछ जल्दी सो जाते और सुबह 3-4 बजे जग जाते थे तथा पढ़ाई करने के बाद अपनी क्लासेज अटेंड करने कैंपस जाते थे जिसमे साइंस के छात्र ज्यादा होते क्योंकि साइंस की ही क्लासेज सुबह सुबह ही लगती थी. ज्यादातर आर्ट्स के छात्र सुबह देर से सोकर उठते क्योंकि या तो उनकी क्लासेज सुबह 10 बजे के बाद लगती या वे रेगुलर क्लासेज अटेंड करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते थे.

उस समय मेस में केवल दोपहर और रात के खाने का ही इंतजाम रहता था. नाश्ते का इंतजाम खुद करना होता था. बन/ब्रेड मक्खन, खस्ते, आमलेट, ब्रेड पकौड़े या फिर मैग्गी लोगों का पसंदीदा नाश्ता हुआ करता था. यह भी लोग या तो टहलते हुए पास में बाबूगंज मोड़ पर जा कर कर लेते या चपरासी से मंगवा लेते. हॉस्टल में बाथरूम सिंगर्स कि भरमार थी और सुबह उठते ही गैलरी में कई छात्र नई पुरानी फिल्मों के गाने गाते गुनगुनाते मिल जाते. "मेरे महबूब क़यामत होगी", "कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है", "तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती", "नजराना भेजा किसी ने प्यार का"....... से लेकर ताज़ा रिलीज़ फिल्मों क़यामत से क़यामत के "पापा कहते हैं कि बेटा हमारा बड़ा नाम करेगा" और फूल और कांटे के "मैंने प्यार तुम्ही से किया है" आदि गाने लोग खूब गाते गुनगुनाते थे. नई रिलीज़ फिल्म देखने के बाद कुछ छात्र हफ़्तों तक उसी फिल्म के गाने गाते रहते थे जिससे लोगों को पता चल जाता कि उसने यह फिल्म पहले ही देख ली है. सुबह तैयार होकर छात्र अपनी क्लासेज अटेंड करने के लिए कैंपस का रुख करते थे. आस पास के कई हॉस्टल से कैंपस में जाने के लिए दो तीन रास्ते हुआ करते थे परन्तु लगभग 95 प्रतिशत छात्रों का पसंदीदा रास्ता पीजी ब्लाक के पास वाले गेट से होकर था. इसका भी कारण कोई विशेष नहीं था सिवाय इसके कि पीजी ब्लाक जिसमे इंग्लिश और इकोनॉमिक्स की क्लासेज लगती थी वहां पर कैंपस की सबसे फैशनेबुल और मॉड लड़कियां पढ़ती थीं. अधिकाँश लड़कियां शहर के बड़े बिज़नेसमैन घरानों या बड़े सरकारी अधिकारियों कि बेटियाँ थीं जो कि महंगे ब्रांडेड कपड़ों मे इम्पोर्टेड परफ्यूम्स की खुशबू बिखेरती हुई दो या तीन के ग्रुप्स में दिखती थीं और उनके कंधे पर छोटे पर्स के अलावा हाथों में शहर के मॉडर्न सिल्क हाउस, केसंस जैसे नामचीन स्टोर का पोलीबैग होता था जिसमे शायद वे पतले नोटबुक्स वगैरह रखती होंगी. ऐसा लगता था गोया वे कैंपस में पढ़ने के बजाय शॉपिंग करने आयी हों. ये लड़कियां कभी भूल से भी हिंदी नहीं बोलती थीं या बोलना पसंद नहीं करती थीं या उन्हें हिंदी बहुत ही कम आती थी. ये लड़कियां अपने ग्रुप के अलावा किसी अन्य लड़के या लड़कियों से बात भी नहीं करती थीं और कभी कभार यदि इनके साथ स्कूल कॉलेज में साथ पढ़ा कोई लड़का या लड़की कैंपस में दिख जाता था तो हाय हेल्लो तक ही सीमित रहती थीं. यही कारण था कि हॉस्टल के ज्यादातर लड़के पीजी ब्लाक का रास्ता कैंपस में अंदर जाने के लिए चुनते थे जिससे कि वे कैंपस के इस कलरफुल नज़ारे का आनंद ले सकें. जिन छात्रों का सब्जेक्ट ही इंग्लिश या इकोनॉमिक्स था उनकी तो पौ बारह थी. इस प्रकार का दृश्य पीजी ब्लाक और थोड़ा बहुत मॉडर्न हिस्ट्री डिपार्टमेंट के अलावा पूरे कैंपस में कहीं नहीं दिखता था..................जारी.......अगली क़िस्त सिर्फ ऐसी लड़कियों पर जो ब्यूटी और टैलेंट का परफेक्ट कॉम्बिनेशन थीं और जिनका डंका पूरे कैंपस में बजता था......











1 comments:

ashvini ने कहा…

अगला भाग प्रतीक्षित है.

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