बुधवार, मार्च 31, 2010

गुरुवार, मार्च 25, 2010

मंगलवार, मार्च 23, 2010

देखिये

शनिवार, मार्च 20, 2010

एक नज़र


बचपन कूड़े में 

गुरुवार, मार्च 18, 2010

सोमवार, मार्च 15, 2010

Know your Signature Style

What does it mean!!.....

SINGLE UNDERLINE BELOW THE SIGN!!
 


These persons are very confident and are good personalities. They are a little bit selfish but believe in "Happiness of human life".


TWO DOTS BELOW THE SIGN !!
 

These persons are considered to be Romantic, can easily change their fiancées as if they change their clothes. They prefer beauty in other persons & they themselves try to look beautiful, they easily attract others.


SINGLE DOT BELOW THE SIGN !! 

These persons are more inclined towards classical arts, simple & are very cool. If you loose faith with them, then these persons will never look back at you. Hence its always better to be careful with these people.

NO UNDERLINES OR DOTS BELOW THE SIGN !! 

These persons enjoy their life in their own way, never pay attention to others views. These are considered to be good natured but are Selfish too.
 
RANDOM SIGN, NO SIMILARITY BETWEEN NAME & SIGN !!


These persons try to be very smart, hide each & every matter, never say anything in straight forward manner, never pay attention to the other person of what he is talking of.

RANDOM SIGN, SIMILARITY BETWEEN NAME & SIGN !!

These persons are considered to be intelligent but never think. These people change their ideas & views as fast as the wind changes its direction of flow. They never think whether that particular thing is right or wrong. You can win them just by flattering them.
SIGN IN PRINTED LETTERS !! 
These persons are very kind to us, have a good heart, selfless, are ready to sacrifice their life for the sake of their near & dear. But they seems to think a lot and may get angry very soon.

WRITING COMPLETE NAME AS THEIR SIGN !!
These persons are very kind hearted, can adjust themselves to any environment & to the person they are talking. These persons are very firm on their views & posses a lot of will power.

funenclave/Saiyan

शनिवार, मार्च 13, 2010

जल्दी न करें

एक ट्रक के पीछे लिखा यह सन्देश 

शुक्रवार, मार्च 12, 2010

टी.टी.के. चेन एवं डी.के. के गरम समोसे व पूड़ी


अब गरम समोसे व पूड़ी की भी ब्रांडिंग 
वाह क्या धांसू नाम है रेस्टोरेंट का 

इंग्लिश बोले तो फोकस







इंग्लिश से फोकस बनता है तभी तो लोग इंग्लिश शब्दों का प्रयोग अपने बोर्ड पर करते हैं भले ही स्पेलिंग गलत लिखने से अर्थ का अनर्थ हो.  

गुरुवार, मार्च 11, 2010

एक नज़र स्टेशनरी की स्पेलिंग पर

लखनऊ की एक किताब एवं स्टेशनरी  की दुकान के बोर्ड पर लिखी  गयी स्टेशनरी की यह  स्पेलिंग 

ये देखिये खूबसूरत करेंसी नोट


ऐसे नोट हम अपने बचपन में चूरन की पुड़िया के साथ पाते थे परन्तु कुछ देशों में ऐसी रंग बिरंगी करेंसी नोट प्रचलन में है जिसकी नक़ल करना  मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है .

रविवार, मार्च 07, 2010

इधर भी नज़र डालें


गर्मियां आ गयी हैं तो गाँव और कस्बे में कोल्ड ड्रिंक्स की सप्लाई  भी करनी है.अब गाँव कस्बे में भी मेहमानों का स्वागत पारंपरिक शरबत के बजाय पेप्सी या कोला से ही किया जाता है. गाँवों  ने अब  काफी प्रगति कर ली  है  अपने भारत में ?



और ये देखिये एक ऑटो वाले ने अपने ऑटो को हेलीकाप्टर  बना डाला है   

शनिवार, मार्च 06, 2010

बैंक ब्याज का भेदभाव अब जुलाई से हटेगा


पहले प्रस्ताव था कि 1 अप्रैल 2010 से बैंकों के सभी तरह के लोन पर बेस रेट की नई पद्धति लागू कर दी जाएगी। लेकिन बैंकों के शीर्ष अधिकारियों से राय-मशविरे के बाद रिजर्व बैक ने इसे अब 1 जुलाई 2010 से लागू करने का फैसला किया है। यह फैसला शुक्रवार को लिया गया। इस नई पद्धति के लागू होने पर अभी तक लागू बीपीएलआर (बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट) पद्धति धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। बीपीएलआर के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह बैंक कर्ज के ब्याज के मामले में किसी भी तरह की बेंचमार्क नहीं रह गई है। अभी तक लगभग 74 फीसदी बैंक कर्ज बीपीएलआर ने नीचे की ब्याज दरों पर दिए गए हैं। इस पद्धति को बैंक अपने हिसाब से इस्तेमाल करते रहे हैं। जैसे, एक ही बैंक के फ्लोटिंग होम लोन पर अभी नए और पुराने ग्राहकों को अलग-अलग ब्याज देना होता है क्योंकि लोन के एग्रीमेंट में लिखा रहता है कि बीपीएलआर से कितने प्रतिशत कम पर ग्राहक से ब्याज लिया जाएगा।
मान लीजिए किसी ने जुलाई 2006 में आईसीआईसीआई बैंक से होम लोन लिया और उस समय बैंक की बीपीएलआर 9.75 फीसदी थी तो ग्राहक को इससे एक प्रतिशत कम, 8.75 फीसदी सालाना की ब्याज दर पर लोन मिला। बीपीएलआर और ग्राहक से ली जानेवाली ब्याज दर का अंतर एग्रीमेंट में बुनियादी तब्दीली न करने पर पूरे लोन की वापसी होने तक बना रहता है। इसीलिए जनवरी 2010 में जहां नए ग्राहकों को 9.25 फीसदी पर फ्लोटिंग होम लोन मिल रहा है, वहीं पुराने से 11.75 फीसदी ब्याज लिया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि बैंक की बीपीएलआर अभी 12.75 फीसदी है। इससे एक फीसदी कम ब्याज पुराने से लिया जाएगा क्योंकि एग्रीमेंट इसी पर हुआ था, जबकि नए के एग्रीमेंट में लिखा है कि उसे बीपीएलआर से तीन फीसदी कम ब्याज पर लोन दिया जा रहा है।
इसी तरह बैंक जहां बड़ी कंपनियों को बीपीएलआर से कम ब्याज पर लोन देते हैं, वहीं एकदम छोटी, लघु व मझोली इकाइयों (एमएसएमई) को वे बीपीएलआर से दो-चार फीसदी अधिक दर पर लोन देते हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे कहती हैं कि बैंक रेट की नई पद्धति लागू हो जाने से यह भेदभाव या असंतुलन खत्म हो जाएगा क्योंकि इससे कम ब्याज दर बैंक अपने किसी भी ग्राहक को कर्ज नहीं दे सकते।
हालांकि रिजर्व बैंक के नए फैसले के मुताबिक बैंक अपने कर्मचारियों और ग्राहकों को एफडी के एवज में दिए जानेवाले कर्ज पर बेस रेट से कम ब्याज ले सकते हैं। बीपीएलआर को बदलने का कदम रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर दीपक मोहंती की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिश पर उठाया जा रहा है। बेस रेट की गणना तीन बातों से की जाएगी कि बैंक के लिए जमा पर कितना खर्च आ रहा है, उसको चलाने का  यानी कुल इस्टैबिशमेंट खर्च कितना है और वह कितना लाभ मार्जिन पाना चाहता है। जमा पर खर्च के आकलन का आधार पहले एक साल की एफडी पर ब्याज की दर थी। लेकिन अब यह इससे कम अवधि की एफडी की ब्याज दर भी हो सकती है। बैंक रेट अभी लागू बीपीएलआर की तरह हर बैंक के लिए अलग-अलग होगी। लेकिन बैंकों की आपसी होड़ के चलते इसमें अधिक अंतर नहीं होगा। इससे यह भी होगा कि अभी की तरह बैंक बेहद कम दरों पर टीजर लोन जैसा धंधा नहीं चला सकते क्योंकि कुछ अपवादों को छोड़कर किसी भी लोन पर ब्याज दर बैंक रेट से कम नहीं हो सकती।
बैंक रेट कितनी होगी, अभी इस पर स्पष्टता नहीं है। जिन बैंकों की कुल जमा में कासाका हिस्सा ज्यादा है, उनकी बैंक रेट 4-5 फीसदी भी हो सकती है। वैसे, पहले माना जा रहा था कि यह दर 8 से 9 फीसदी हो सकती है। बैंक रेट के 1 जुलाई 2010 से लागू होने के बाद बीपीएलआर की व्यवस्था तुरंत नहीं खत्म होगी। बैंक अपने मौजूदा ग्राहकों को विकल्प देंगे कि वे नई या पुरानी व्यवस्था में किसी एक को चुन सकते हैं। असल में 15-20 साल के लोन की शर्तें बदलना काफी कानूनी पचड़े का काम है। हो सकता है कि बैंक इसका बहाना बनाकर पुराने ग्राहकों को नई सहूलियत न दें या फिर इसके लिए अच्छा-खासा प्रीमियम अलग से देने की मांग करें।
www.arthkaam.com से साभार

शुक्रवार, मार्च 05, 2010

एक नज़र इधर भी

गाँव गाँव में फैली मोबाइल क्रांति : एक साहब ने तो highway पर पी.डब्लू.डी. के लगाये बोर्ड पर ही अपनी रीचार्ज कूपन की दुकान का प्रचार कर डाला. 


ध्यान से देखें  पी.डब्लू.डी.ने भी धीरे को धीरें लिखकर हिंदी के साथ मजाक  ही किया है.
क्या जिम्मेदार लोग ध्यान देंगे ?

गुरुवार, मार्च 04, 2010

बल्ले बल्ले ढेर सारी नौकरियां वोह भी बैंक में


नौकरी बहुत सी बस प्रयास करने की जरूरत है 

मंगलवार, मार्च 02, 2010

पास देने का नया अंदाज़


HORN PLEASE का नया संस्करण, लखनऊ इलाहाबाद highway पर ट्रक के पीछे लिखा यह सन्देश 

सोमवार, मार्च 01, 2010

समाज सेवा या अभी तक वेतन न बढ़ाये जाने पर पार्ट टाइम जॉब

जुहू बीच,मुंबई पर इंडिया के  International Bank की टी शर्ट पहने हुआ एक आदमी(शायद कर्मचारी ?) बड़ी तन्मयता से  सफाई करता हुआ
उक्त फोटोग्राफ्स हमारे सहयोगी श्री सी.एन.सिन्हा जी ने अपने मोबाइल से मुंबई प्रवास के दौरान खींची है      

ये क्या हो रहा है भाई, ये क्या हो रहा है

बैंक ऑफ़ बड़ौदा के केंद्रीय कार्यालय(BCC-Mumbai) की छत पर फुरसत  के पल में ये जोड़ा
उक्त फोटोग्राफ्स हमारे सहयोगी श्री सी.एन.सिन्हा जी ने अपने मोबाइल से मुंबई प्रवास के दौरान खींची है.  

किसान और कृषक तो एक ही हैं प्रणव दादा


वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण के अंत में कहा है कि यह बजट आम आदमी का है। यह किसानों, कृषकों, उद्यमियों और निवेशकों का है। इसमें बाकी सब तो ठीक है, लेकिन किसान और कृषक का फर्क समझ में नहीं आया। असल में वित्त मंत्री ने अपने मूल अंग्रेजी भाषण में फार्मर और एग्रीकल्चरिस्ट शब्द का इस्तेमाल किया है। लेकिन वित्त मंत्रालय के अनुवादक बाबुओं ने शब्दकोष देखा होगा तो दोनों ही शब्दों का हिंदी अनुवाद किसान, कृषक और खेतिहर लिखा गया है तो उन्होंने बजट भाषण के हिंदी तर्जुमा में इसमें से एक के लिए किसान और दूसरे के लिए कृषक चुन लिया। वैसे तो फार्मर और एग्रीकल्चरिस्ट का अंतर भी साफ नहीं है क्योंकि अपने यहा फार्मर बड़े जोतवाले आधुनिक खेती करनेवाले किसानों को कहा जाता है और एग्रीकल्चरिस्ट भी वैज्ञानिक तरीके से खेती करनेवाले हुए।
हो सकता है कि प्रणब मुखर्जी अपने मंतव्य में स्पष्ट हों क्योंकि जब वे उद्यमियों और निवेशकों के साथ इनका नाम ले रहे हैं तो जाहिर है उनका मतलब बड़े व आधुनिक किसानों से होगा। नहीं तो वे स्मॉल व मार्जिनल फार्मर/पीजैंट कह सकते थे। लेकिन बाबुओं ने तो बेड़ा गरक कर दिया। कोई उनसे पूछे कि किसान और कृषक में अंतर क्या है तो लगेंगे संस्कृत या अंग्रेजी बतियाने।
जमीनी स्तर की बात करें तो अपने यहां मूलत: काश्तकार शब्द का इस्तेमाल होता है। आधुनिक काश्तकार फार्मर कहे जाते हैं तो छोटे व औसत काश्तकारों को किसान कहा जाता है। रिजर्व बैंक के एक अधिकारी के मुताबिक देश में कुल 12.73 करोड़ काश्तकार और 10.68 करोड़ खेतिहर मजदूर हैं। कुल काश्तकारों में से 81.90 फीसदी लघु व सीमांत (स्मॉल व मार्जिनल) किसान हैं जिनकी जोत का औसत आकार क्रमश: 1.41 हेक्टेयर (3.53 एकड़) व 0.39 हेक्टेयर (0.98 एकड़) है। साफ है कि वित्त मंत्री लगभग इन 82 फीसदी काश्तकारों को फार्मर या एग्रीकल्चरिस्ट कहकर उनका मज़ाक तो नहीं उड़ाएंगे। इसका मतलब वे बाकी 18 फीसदी काश्तकारों की बात कर रहे थे। इनमें से भी पूरी तरह वर्षा पर आधारित असिंचित इलाकों में गरीबी के बावजूद काश्तकारों की जोत का आकार बड़ा है और गणतंत्र के 60 सालों के बावजूद देश की 58 फीसदी खेती अब भी वर्षा पर निर्भर है। इसका मतलब प्रणव दा देश के बमुश्किल दो करोड़ काश्तकारों की बात कर रहे थे। अब सवाल उठता है कि ऐसी सूरत में यह बजट आम आदमी का बजट कैसे हो गया?
कृषि के विकास के लिए वित्त मंत्री ने बजट में चार सूत्रीय रणनीति पेश की है। इसमें पहला है हरित क्रांति को बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे पूर्वी राज्यों तक पहुंचाना। सवाल उठता है जो हरित क्रांति अब अपनी प्रांसगिकता खो चुकी है, जिसके चलते पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों की भूमि में बुनियादी रासायनिक असंतुलन पैदा हो गया है, उसे इन नए राज्यों तक ले जाकर क्या हासिल हो जाएगा? खैर, इसके लिए नए साल में 400 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। गणतंत्र के साठवें साल में असिंचित इलाकों के 60 हजार गांवों को दलहन व तिलहन उत्पादन का केंद्र बनाया जाएगा। यहा उत्पादकता बढ़ाने के बहुत सारे मदों पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 300 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं। 200 करोड़ रुपए जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की शुरुआत के लिए रखे गए हैं।
कृषि के लिए दूसरी रणनीतिक पहल फूड सप्लाई श्रृंखला को बेहतर बनाने की है ताकि फल व सब्जियों जैसे कृषि उत्पाद किसानों के खिच्चे से निकलने के बाद बरबाद न हो जाएं। प्रणव दादा का कहना है कि इससे किसानों से माल खरीदते समय दिए गए मूल्य, थोक मूल्य और खुदरा मूल्य का भारी अंतर कम करने में मदद मिलेगी। तीसरी पहल किसानों को ज्यादा बैंक ऋण सुलभ कराने की है। इस साल किसानों को बैंकों से 3.25 लाख करोड़ रुपए का कर्ज मिला है, जिसे नए वित्त वर्ष में 3.75 लाख करोड़ रुपए कर देने का प्रस्ताव है। अच्छी बात है। लेकिन हकीकत यह है कि कुल कृषि ऋण में संख्या के लिहाज से छोटे किसानों का हिस्सा घटता जा रहा है। 1980-81 में यह 51 फीसदी था, जबकि 2007-08 में घचकर 41 फीसदी पर आ गया। मात्रा के लिहाज से भी छोटे किसानों का हिस्सा इस दौरान महज 25 फीसदी पर कमोबेश ठहरा रहा है।
वैसे, फसली ऋण पर ब्याज दर में नए साल से दो फीसदी छूट दी जाएगी। यानी किसानों को यह कर्ज 5 फीसदी सालाना ब्याज पर मिलेगा। कृषि को लेकर वित्त मंत्री की चौथी रणनीतिक पहल खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहन देने के बारे में है। पहले से लग रहे दस मेगा फूड पार्क परियोजनाओं के अलावा अब सरकार पांच और ऐसे फूड पार्क बनाएगी। सरकार ने कोल्ड स्टोरेज के लिए विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) की सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला लिया है। इसके लिए ईसीबी नीति के अंतर्गत इंफ्रास्ट्रक्चर की परिभाषा बदली जा रही है।
इन प्रस्तावों को जानने के बाद आपको साफ ही हो गया होगा कि वित्त मंत्री ने बहुत सोच-समझकर फार्मर और एग्रीकल्चरिस्ट शब्द का इस्तेमाल किया था। लेकिन बाबुओं का क्या करें। उन्होंने इस कृषि आभिजात्य को किसान और कृषक बना दिया। अरे, इन्हीं किसानों और कृषकों के नाम पर तो कोई भी सरकार ने मर्सिडीज बेंज और होंडा एकॉर्ड रखनेवाले इस ग्रामीण आभिजात्य को टैक्स के दायरे में नहीं ला रही है। नहीं तो 20-25 एकड़ से अधिक जोतवाले काश्तकारों पर टैक्स लगाने में क्या हर्ज है?
www.arthkaam.com से साभार 

अप्रैल से बचत खाते पर रोजाना ब्याज





नए वित्त वर्ष 2010-11 के पहले दिन यानी 1 अप्रैल 2010 से देश के करीब 62 करोड़ बचत खाताधारकों के लिए एक नई शुरुआत होने जा रही है। इस दिन से उन्हें अपने बचत खाते में जमा राशि पर हर दिन के हिसाब से ब्याज मिलेगा। ब्याज की दर तो 3.5 फीसदी ही रहेगी। लेकिन नई गणना से उनकी ब्याज आय पर काफी फर्क पड़ेगा। इस समय महीने की 10 तारीख से लेकर अंतिम तारीख तक उनके खाते में जो भी न्यूनतम राशि रहती है, उसी पर बैंक उन्हें ब्याज देते हैं। इससे आम आदमी को काफी नुकसान होता रहा है।
मान लीजिए आपके सेविंग एकाउंट में 10 नवंबर को 1000 रुपए है और 11 नवंबर को आप उसमें एक लाख रुपए जमा करा देते हैं। लेकिन 30 दिसंबर को आप ये एक लाख रुपए निकाल लेते हैं तो आपको इन 51 दिनों के लिए केवल 1000 रुपए पर ही ब्याज मिलेगा क्योकि 10 नवंबर से 30 नवंबर तक आपके बचत खाते में न्यूनतम राशि 1000 रुपए ही थी और उसके बाद 10 दिसंबर से 31 दिसंबर के दौरान भी न्यूनतम राशि 1000 रुपए ही रह गई। जबकि इस दौरान आपके एक लाख एक हजार रुपए बैंक को 49 दिनों के लिए उपलब्ध रहे। यह नियम बैंकों के फायदे में रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि ज्यादातर लोग महीने के खर्च के लिए बचत खाते से 10 तारीख के पहले ही पैसा निकाल लेते हैं। लेकिन रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल 2010 से नया नियम बनाकर आम बचत खाताधारियों का फायदा कर दिया है। अब उन्हें बैंकों के लिए फंड के सबसे सस्ते साधन से की गई कमाई का अपेक्षाकृत ज्यादा हिस्सा मिलने लगेगा।
इस नियम की घोषणा 21 अप्रैल 2009 को चालू वित्त वर्ष 2009-10 की सालाना मौद्रिक नीति पेश करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी सुब्बाराव ने की थी। उन्होंने कहा था कि कई बैंकों का सुझाव है कि बचत खाते की जमाराशि पर ब्याज की गणना या तो महीने की पहली तारीख से लेकर आखिरी तारीख के न्यूनतम बैलेंस पर की जाए या रोजाना के आधार पर। मसला बैंकों के शीर्ष संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के पास ले जाया गया जिसका कहना था कि रोजाना आधार पर ब्याज की गणना तभी संभव है जब वाणिज्यिक बैंकों की सभी शाखाओं का कंप्यूटरीकरण पूरा हो जाए। अब चूंकि यह काम संतोषजनक स्तर तक पूरा हो चुका है। इसलिए सभी वाणिज्यिक बैंकों के बचत खातों पर ब्याज की गणना 1 अप्रैल 2010 से रोजाना आधार पर करने का प्रस्ताव है। बैंकों के साथ बातचीत के जरिए इसे लागू करने की जरूरतें पूरी कर ली जाएंगी।
रिजर्व बैंक गवर्नर जब यह वक्तव्य दे रहे थे, जब तक स्थिति यह थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैकों में से पंजाब एंड सिंध बैंक, यूको बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अलावा बाकी सभी बैंकों में शाखाओं के कंप्यूटरीकरण का काम लगभग 100 फीसदी पूरा हो चुका था। देश में सक्रिय कुल 80 अनूसूचित वाणिज्यिक बैंकों में से बाकी निजी क्षेत्र के 22 और 31 विदेशी बैंक तो पहले से ही पूरी तरह कंप्यूटरीकृत हैं। पिछले 11 महीनों में यकीनन इस मामले में काफी प्रगति हुई होगी और नए वित्त वर्ष के पहले दिन से नए नियम के लागू होने में शायद कोई मुश्किल नहीं आएगी।
लेकिन जानकारों के मुताबिक कुछ बैंक अब भी इस नियम को लागू करने से बचने के लिए तरह-तरह की दलीलें दे रहे हैं। वैसे, आईबीए की कंप्यूटीकरण पूरा हो जाने की दलील भी भी एकांगी लगती है क्योंकि बैंक जब इस समय भी चालू खाते में ओवरड्राफ्ट पर अपने ब्याज की गणना रोजाना के आधार पर कर रहे हैं तो वे बचत खाते में रोजाना की गणना से खाताधारक को ब्याज क्यों नहीं दे सकते। असल बात यह है कि हर धंधे की तरह बैंक भी अपने मुनाफे पर चोट नहीं लगने देना चाहते। असल में चालू और बचत खाते या कासा की जमा बैंकों के लिए फंड जुटाने का सबसे सस्ता माध्यम है।
बैंक जहां कासा (सीएएसए) के अंतर्गत आनेवाली जमा में चालू खाते की रकम पर कोई ब्याज नहीं देते, वहीं बचत खाते की रकम पर उन्हें 3.5 फीसदी सालाना की दर से ब्याज देना पड़ता है। लेकिन न्यूनतम बैलेंस के नियम के चलते व्यवहारिक तौर पर बचत खाते पर जमाकर्ता को 2.5 से 2.8 फीसदी ही ब्याज मिल पाता है। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों की कुल जमा का करीब 22 फीसदी बचत खातों और 12 फीसदी चालू खातों से आता है। बैंकों के बचत खातों में जमा रकम लगभग 8.75 लाख करोड़ रुपए है। बैंक न्यूनतम बैलेंस के नियम के चलते 3.5 फीसदी के निर्धारित ब्याज से करीब एक फीसदी कम ब्याज देकर हर साल लगभग 8750 करोड़ रुपए बचा रहे हैं। लेकिन 1 अप्रैल 2010 से यह राशि आम आदमी को मिलने लगेगी। इससे जाहिर है बैंकों को नुकसान होगा। इसलिए वे आखिरी दम तक इसका विरोध करेंगे। लेकिन बैंकिंग क्षेत्र का नियामक भारतीय रिजर्व बैंक शायद उनके विरोध को अब तवज्जो नहीं देगा।

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